गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले में रिश्वतखोरी की जांच ठंडे बस्ते में

कलेक्टर के आदेशों की अनदेखी, चार माह बाद भी नहीं आई जांच रिपोर्ट
रिश्वतखोरी के मामले में इतनी नरमी क्यों?
क्या यह राजनैतिक दबाव का नतीजा है या फिर रिश्वत की रकम की पहुंच ऊंचे पदों तक — यही अब सबसे बड़ा सवाल बन गया है।
कवर्धा – राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा में रिश्वतखोरी का गंभीर मामला प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ गया है। चार महीने पहले आंगनवाड़ी केंद्र मुड़घुसरी में कार्यकर्ता और सहायिका पद की भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोप उजागर हुए थे, लेकिन जांच की कार्यवाही अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी है।
आरोप है कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान परियोजना अधिकारी नमन देशमुख ने अभ्यर्थी गीता मेरावी से एक लाख रुपये रिश्वत की मांग की थी। इस पूरे प्रकरण का ऑडियो क्लिप भी मीडिया में वायरल हुआ था, जिसमें परियोजना अधिकारी और कर्मचारी रामाधार के बीच पैसों की बातचीत साफ़-साफ़ सुनी जा सकती है।
मीडिया रिपोर्ट सामने आने के बाद कलेक्टर कवर्धा ने तत्कालीन एसडीएम बोड़ला को जांच अधिकारी नियुक्त करते हुए सात दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। किंतु चार माह बीत जाने के बाद भी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कलेक्टर के आदेशों को भी जिले में गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
पीड़िता गीता मेरावी ने बताया कि उसने कार्यकर्ता पद के लिए मांगे गए एक लाख रुपये में से पचास हजार रुपये दिए, लेकिन शेष राशि न देने पर उसकी नियुक्ति रद्द कर दी गई। गीता का कहना है —
“जब जिला कलेक्टर अपने ही आदेशों का पालन नहीं करा पा रहे हैं, तो जिले में रिश्वतखोरी की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।”
सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक जांच अधिकारी रूचि शार्दुल के तबादले के बाद यह जांच नए एसडीएम को सौंपी गई, किंतु दो माह बाद भी रिपोर्ट नहीं आई। सभी पक्षों के बयान दर्ज होने के बावजूद जांच अधूरी पड़ी है। वहीं, कर्मचारी रामाधार ने अपने लिखित बयान में यह स्वीकार किया है कि उसने परियोजना अधिकारी नमन देशमुख के निर्देश पर ही पैसे मांगे थे।
गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले में इस तरह का रिश्वत प्रकरण सामने आना और कलेक्टर का अपने ही आदेशों का पालन न करा पाना, राज्य सरकार की “सुशासन” की छवि पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
यह मामला मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार की “भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन” की नीति पर भी कड़ा तमाचा साबित हो रहा है।




