कवर्धामध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़

नेशनल हाईवे-30 पर वन भूमि पर ढाबा संचालक का कब्जा — वन विभाग की नींद टूटी तो कार्रवाई, मगर कब्जाधारी अब भी बेखौफ

बोड़ला, [तारीख]। बोड़ला–जबलपुर मार्ग (NH-30) पर वन भूमि पर खुलेआम कब्जा कर झोपड़ी खड़ी कर दी गई थी। झोपड़ी निर्माण के लिए हरे-भरे वृक्षों की बेरहमी से कटाई की गई और लगभग 35 नग बल्ली का उपयोग किया गया। यह पूरा निर्माण मुख्य मार्ग के किनारे दिनदहाड़े होता रहा, जबकि वन विभाग मूकदर्शक बना रहा।

सूत्रों के अनुसार, कब्जाधारी व्यक्ति पहले भी चिल्फी घाटी के नीचे बंजारी मंदिर के पास वन भूमि पर अवैध कब्जा कर चुका है। ऐसा प्रतीत होता है मानो विभाग ने उसे “कब्जे का ठेका” दे रखा हो। हाईवे से सटे ढाबे में “जलाऊ लकड़ी” के नाम पर रोजाना जंगल का दोहन किया जा रहा है, और विभाग केवल दिखावे की कार्रवाई कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का प्रयास करता दिख रहा है।

जंगल की लकड़ी कटाई की गई बल्ली

जब इस अवैध कब्जे की जानकारी मीडिया कर्मियों द्वारा रेंजर आकाश यादव को दी गई, तो उन्होंने पुराने अंदाज़ में जवाब दिया — “दल भेज रहे हैं।”
मीडिया रिपोर्ट के बाद ही विभाग हरकत में आया और टीम ने मौके पर पहुंचकर कब्जा हटाने की कार्रवाई की और मौके से बल्ली की जब्ती बनाई गई,हालांकि यह कार्रवाई अधूरी साबित हुई — क्योंकि कब्जाधारी अब भी हाईवे के “UP ढाबा” के पीछे और बंजारी मंदिर के आसपास वन भूमि के बड़े हिस्से पर डटा हुआ है।स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र के बिट कर्मी और डिप्टी रेंजर की भूमिका समझ से परे है। जो चीजें आम जनता को साफ दिख रही हैं, वे वनकर्मियों की नज़र से कैसे छूट जाती हैं?
सूत्रों के मुताबिक, कई वनकर्मियों का “स्वागत” ढाबा संचालक की ओर से होता रहा है, जिससे विभागीय कार्रवाई “कछुआ चाल” में फंसी हुई है।

अब बड़ा सवाल यह है —
क्या वन विभाग ने जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया है?
या फिर “मौन” ही अब विभाग की नई नीति बन गई है?
क्या वन भूमि का यह बड़ा क्षेत्र सचमुच कब्जामुक्त हो पाएगा?

मुकेश अवस्थी

प्रधान संपादक

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