
प्रमोद मिश्रा गुड्डू भैया रीवा की खास रिपोर्ट
रीवा,टीबी ( क्षय रोग, तपेदिक) विश्व की हजारों वर्ष पूर्व पुरानी बैक्टीरिया जनित संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या थूंकने से उसके संपर्क में आने वाले स्वस्थ व्यक्ति को लग जाती है. हमें यह जानना चाहिए कि वैश्विक आबादी के 25% लोग टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित हैं. पूरी दुनिया में 24 मार्च को आमजन में क्षय रोग के लक्षण, फैलने के कारण, निःशुल्क उपचार की जागरूकता हेतु विश्व छय दिवस मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2025 की विश्व क्षय दिवस की थीम है_ “हां हम टीबी को खत्म कर सकते हैं, प्रतिबद्ध, निवेश, उद्धार “. हमें जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कॉक को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने वर्ष 1882 में जानलेवा बीमारी टीबी के होनें के कारण बैक्टीरिया

माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज किया था. यदि इस बीमारी के लक्षणों की पहचान शीघ्र कर लिया जाए, समुचित निःशुल्क औषधियों की उपलब्धता, रोगियों का समुचित पोषण के प्रबंधन से टीबी बीमारी का उन्मूलन किया जा सकता है. टीबी बीमारी के लक्षण
टीबी सर्वाधिक मनुष्य के फेफड़े (90%) को प्रभावित करती है किंतु शरीर के अन्य अंगों मस्तिष्क, गले, पेट, लिवर, गुप्तांग, हड्डी, चमड़ी, हृदय, किडनी सहित अन्य अंगों में भी टीबी होनें की संभावना हो सकती है. फेफड़ों की टीबी में दो सप्ताह से अधिक की खांसी, शाम को बुखार आना, रात्रि में पसीना होना, भूंख का न लगना, वजन कम होना, खांसी में खून आना जैसे लक्षण हो सकते हैं। साथ ही प्रभावित अंग के लक्षण होते हैं.

टीबी की स्थिति
टीबी की बीमारी भारत सहित पूरी दुनिया में सर्वाधिक मृत्यु वाली 10 प्रमुख बीमारियों में एक है. विश्व में प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक नए रोगी होते हैं जबकि भारत में सर्वाधिक 27 लाख व अन्य विकासशील देशों पाकिस्तान, बंग्लादेश, इंडोनेशिया,नेपाल आदि विकसित देशों की तुलना में ज्यादा मरीज हैं। विश्व में प्रतिवर्ष 12 लाख क्षय रोगियों की मौत होती है, जबकि भारत में अनुमानित मौत 4 लाख होती है. दुखद पहलू यह है कि टीबी से भारत में हर 3 मिनट में दो मौत होती है जिसमें सर्वाधिक युवा होते हैं प्रतिदिन 1000 लोग इस बीमारी से दम तोड़ देते हैं. प्रतिवर्ष 3 लाख बच्चों का अनाथ होना, एक लाख महिलाओं का तिरस्कार होना, 850 करोड रुपए की आर्थिक क्षति होती है.
टीबी से जटिलता
जानलेवा संक्रामक रोग टीबी से होने वाली प्रमुख जटिलताओं में फेफड़े का खराब होना, फेफड़े का फेल होना, फेफड़ों से खून आना, विभिन्न जोड़ो, (कूल्हा व घुटना ) का खराब होना, स्पाइनल कार्ड के प्रभावित होने से लकवा, मस्तिष्क ज्वर और मानसिक अवसाद, किडनी, लीवर, हृदय का फेल होना, महिलाओं में बांझपन, एनीमिया, एचआईवी का तेजी से फैलाव, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी के कारण अन्य संक्रामक रोगों का तेजी से होना ,फेफड़े का कैंसर और अंततः गंभीर स्थिति में मृत्यु.
देश में 2025 तक टीबी उन्मूलन_ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2030 तक दुनिया के समस्त देशों से टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है जिसके विरुद्ध भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 5 वर्ष पूर्व 2025 तक भारत को क्षय मुक्त यानि टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है. वर्ष 2025 को समाप्त होने में मात्र 9 माह है जबकि नए क्षय रोगियों की खोज व होने वाली मृत्यु को लक्ष्य के अनुरूप नहीं लाया जा सकता. 2025 तक टीबी उन्मूलन के लक्ष्य प्राप्ति न होने में प्रमुख बधाएं हैं- गरीबी, निरक्षरता, पोषण में कमी,अज्ञानता के कारण जांच व इलाज में विलंब ,शहरीकरण व अर्बन स्लम में वृद्धि, औद्योगीकरण, बेघर, खराब आवास, लिंग भेद, पुरुष प्रधान समाज, दूरस्थ पहुंच विहीन गांव तक कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं, सामाजिक कलंक मानना, बीच में इलाज छोड़ देना, अपर्याप्त जांच, जांच सामग्री, प्रशिक्षण स्वास्थ्य कार्यकर्ता, उपकरण व दवाइयों का अभाव, तंबाकूधूम्रपान धूम्रपान शराब का सेवन, डायबिटीज और एमडीआर (रोग प्रतिरोधी ) क्षय रोगियों की बढ़ती संख्या, एचआईवी_ टीबी का संक्रमण में वृद्धि के साथ ही अति महत्वपूर्ण कारण राजनीतिक व प्रशासनिक प्रतिबद्धता में कमी.
क्षय रोग में जांच _
क्षय रोग की जांच अंतर्गत फेफड़ों की बीमारी में बलगम जांच, सीना का एक्सरे, सीटी स्कैन, विभिन्न अंगों की टीबी हेतु एफएनएसी, सोनोग्राफी, माँटूक्स टेस्ट ,सीबी नाट मशीन द्वारा जाँच से बीमारी का पता लगता है.
हमारा रीवा व क्षय रोग_
पूरे देश व प्रदेश के साथ रीवा जिला में भी क्षय उन्मूलन कार्यक्रम प्रगति में है. वर्ष 2024 में जिले में कुल 5685 रोगी चिन्हित हुए जिसमें एमडीआर 198, एचआईवी_ टीबी सह संक्रमण 51, और डायबिटीज_ टीबी के 328 रोगियों का इलाज शुरू हुआ. साथ ही दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य कर्मियों व बीच-बीच में दवाइयों की कमी तथा स्वास्थ्य केन्द्रों में क्रियाशील एक्स-रे मशीन का अभाव के कारण टीबी रोग का उन्मूलन 2025 में संभव नहीं है. जिससे भारत शासन को इस लक्ष्य को 2030 तक बढ़ाना चाहिए.